कलुआ की विद्या (कहानी...व्यंग)
उस दिन कई वर्षो के बाद कलुआ दूध का एक लोटा और लड्डुओं का एक डिब्बा लेकर गाँव के प्राथमिक विद्यालय में मास्टर चमन लाल जी से मिलने गया था.
चमन लाल जी इतने वर्षो के बाद कलुआ को देखकर खुश होकर बोले,"अरे कलुवा, आज इतने वर्षो के बाद मेरी याद कैसे आ गयी तुझको?"
कलुवा स्कूल के बरामदे की उस जगह की तरफ देख रहा था जहां वो चौथी कक्षा में पढ़ते समय बैठा करता था. लेकिन कलुवा ने चौथी के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी.
वो उन दिनों को याद करने लगा जब वो हर दिन मास्टर चमन लाल जी की सेवा करता था और हर रोज एक लोटा दूध और कुछ ना कुछ खाने को लाया करता था.
एक दिन उसको मास्टर चमन लाल जी ने कहा था,"कलुवा, तू मेरी सेवा तो बहुत करता है.
हर रोज मेरे लिए दूध लेकर आता है और हर दिन मेरे लिए कुछ ना कुछ खाने के लिए भी लाता है.
पर मुझे बहुत अफ़सोस है के तेरा दिमाग पढ़ाई में काम नहीं करता है. तेरे भाग्य में विद्या है ही नहीं! तेरे पास विद्या कभी भी नहीं आ सकती है! इसमें मैं कुछ भी नहीं कर सकता हूँ!"
दूध का लोटा और लड्डुओं का डिब्बा कलुआ से लेने के बाद जैसे ही मास्टर चमन लाल कुछ कहने ही लगे थे के तभी कलुआ बोल पड़ा,
"मास्टर जी! मेरी शादी हो गयी है और मेरी पत्नी का नाम 'विद्या' है. आपकी की गयी सेवा के कारण ही मुझे किसी ना किसी रूप में 'विद्या' मिल ही गयी है!"
मास्टर चमन लाल जोर जोर से हंसने लगे. उन्होंने एक लड्डू मुंह में डाला और फिर लोटे से दूध पीने लगे.
ऐसा लग रहा था के जैसे उनके कलुआ नाम के उस छात्र ने बहुत बड़ी सफलता पा ली थी.
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